Tuesday, 27 December 2016

माटी कहे कुम्हार से


माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे,
एक दिन ऐसा आवेगा, मैं रोंदूंगी तोहे ॥

आये हैं सो जायेंगे, राजा रंक फकीर,
एक सिंघासन चढ़ी चले, एक बंधे जंजीर ॥

दुर्बल को ना सतायिये, जाकी मोटी हाय,
बिना जीब की खाल से, लौह भसम हो जाए ॥

चलती चक्की देख के दिया कबीर रोए,
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोए ॥

पत्ता टूटा डाल से, ले गयी पवन उडाय,
अबके बिछड़े कब मिलेंगे, दूर पड़ेंगे जाय ॥

कबीर आप ठगायिये, और ना ठगिये कोय,
आप ठगे सुख उपजे, और ठगे दु:ख होए ॥

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